कब बढ़ेगा सहिया का मानदेय
जमशेदपुर: झारखंड सरकार की संपूर्ण स्वास्थ विभाग की योजनाएं जो गांवों में क्रियान्वित होती है वो सहियाओं पर टिकी हुई है । सरकार कोई भी नई योजना लागू करती है तो उसकी जिम्मेदारी सहियाओं पर डाल देती है । इसके बदले सहिया (आशा) का न तो मानदेय बढ़ाया जाता है और न ही प्रोत्साहन राशि में वृद्धि की जाती है ।
गांव में गर्भवती और बच्चों का टीकाकरण में सहिया की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है । क्षेत्र की एएनएम महीने में एक दिन ही टीकाकरण के दिन गांव जाती है । टीकाकरण की पूरी जिम्मेदारी सहिया के कधों पर ही होती है ।
झारखंड के लगभग 32000 गांवों में स्वास्थ्य विभाग की रीढ़ यह सहिया ही है । लेकिन इन सहिया को सिर्फ 2000 रुपया मानदेय और कुछ राशि प्रोत्साहन के रूप में मिलता है । प्रोत्साहन राशि लेने में कभी कभी सालो लग जाता है । इसके लिए उन्हें CHC का चक्कर अलग से लगाना पड़ता है।
सरकार द्वारा चलाए जा रहे मलेरिया, फलेरिया, टीबी, एनीमिया , कुष्ठ रोग आदि जीतने भी कार्यक्रम है उनमें सहिया को ही जिम्मेदारी दे दी जाती है । महीने में 30 दिन इनसे काम लिया जाता है लेकिन मानदेय के रूप में सिर्फ खानापूर्ति की जाती है । अगर रात में गांव में किस महिला को प्रसव पीड़ा होती है तो सहिया ही उसे सरकारी हॉस्पिटल लेकर जाती है और उसे रात भर मां के साथ हॉस्पिटल में रहना पड़ता है । सहियाओंं के साथ CHC में ब्लॉक कार्यक्रम प्रबंधक और ब्लॉक लेखा प्रबंधक द्वारा सही व्यवहार भी नहीं किया जाता है ।
सहिया तमाम तरह की प्रशासनिक और आर्थिक कठिनाइयों के बाद भी अपना काम बहुत ही ईमानदारी से करती है । झारखंड में कितने सरकारें आ जा चुकी है लेकिन सहिया की समस्या को सुनने वाला कोई नहीं है । अनेक राज्यों में राज्य सरकारों ने सहिया के मानदेय में राज्य के फंड से वृद्धि की है लेकिन झारखंड सरकार सिर्फ बाबुओं के वेतन वृद्धि में ही लगी हुई है ।