Politics

नेपाल में लोकतंत्र जला या जलाया गया

जमशेदपुर: नेपाल कभी अपने पहाड़ों और शांति के लिए विश्व भर में जाना जाता था लेकिन आज जो घटनाएं वहां हुई है उससे एक डर पैदा हो गया है । क्या भीड़ को इतना बेकाबू होना चाहिए कि वो देश के संसद, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के घरों को जला दे ? क्या भीड़ के पास इतनी शक्ति होनी चाहिए कि वो पूर्व प्रधानमंत्री की बेकसूर पत्नी को जिंदा जला दे ? तमाम ऐसे प्रश्न है जो किसी भी सभ्य समाज को डरा सकता है । आज प्रश्न यह उठता है कि क्या सोशल मीडिया सच में इंसानों के जिंदगी से भी बड़ा बन चुका है ? सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगने से क्या भीड़ किसी को भी जान से मार सकती है ? आखिरकार नेपाल में ऐसा क्या हुआ कि दो दिनों के अंदर ही नेपाल जल गया ?

नेपाल में राजशाही के समाप्ति के बाद से ही लोकतंत्र में सरकार वहां अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी । हर साल सरकारें बदलती रही और बेरोजगारी की समस्याएं विकराल होती गई । नेपाल के स्थाई सरकार कभी नहीं बन सकी और युवाओं के लिए रोजगार सृजन के अवसर कम होते गए । नेताओं पर भ्रष्टाचार के मामले उठे लेकिन उन्हें दबा दिया गया । नेपाल के लोगों को लगा था कि राजशाही के समाप्ति के बाद वहां विकास की नई इबारत लिखी जाएगी लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हो सका । वहां की सरकार समय समय पर भारत विरोधी रणनीति अपनाती रही और चीन के समर्थन में खड़ी दिखी । चीन ने अपने फायदे के लिए नेपाल को भारत विरोधी बना दिया । भारत सरकार चाहते हुए भी नेपाल को आज मदद करने की स्थिति में नहीं है । किसी भी लोकतांत्रिक देश में शांति पूर्ण विरोध प्रदर्शन करना लोगों का अधिकार होता है । लेकिन जब वही विरोध हिंसक और हत्या के रूप में बदल जाए तो उसे देश विरोधी माना जाता है । आज प्रधानमंत्री ओली के इस्तीफे के बाद क्या वहां के नए प्रधानमंत्री के लिए चुनौतियां समाप्त हो जाएगी ? शायद नहीं क्योंकि ये हिंसक युवा एक चिंगारी है जो नेपाल को जलाने पर आमदा है । सकारात्मक बातचीत की गुंजाइश नेपाल में दिख नहीं रही है और वहां सैनिकों से हथियार छीने जा रहे है । नेपाल में भीड़ अब लोकतंत्र संचालित कर रही है ।

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