महिलाओं को सरकारी स्तर पर सीधे पैसे मिलने से एनजीओ की मुश्किलें बढ़ी
जमशेदपुर: भारत में पिछले कुछ वर्षों से राजनीतिक दलों ने सत्ता के लालच के लिए विशेषकर महिलाओं को प्रलोभन देना शुरू किया है । महिलाओं के हाथों में सीधे पैसे भेजकर वे महिलाओं का वोट प्राप्त कर रहे है और अपनी सरकारें राज्य में बना रहे है । सभी राजनीतिक दल इसी तरीके से सत्ता प्राप्त कर रहे है और यह उनके लिए सबसे आसान भी है ।
राजनीतिक दलों की इन फ्री योजनाओं के कारण अब ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के हाथों में सीधे पैसे आने लगे है । महिलाओं को समाजिक और राजनीतिक रूप से सशक्त करने में आर्थिक रूप से अब सरकारें मदद कर रही है । सरकार का मानना है कि महिलाओं को डायरेक्ट पैसे देने से इनका आर्थिक विकास के साथ साथ व्यक्तित्व का भी विकास हो रहा है । कई मायने में यह महिलाओं के लिए सही भी है और इसके अपने कुछ दुष्प्रभाव भी है ।
सरकार के इस कदम से सबसे ज्यादा दुविधा में देश की गैर सरकारी संगठन (NGO) है । चूंकि देश में अधिकांश एनजीओ सॉफ्ट मुद्दों पर कार्य करती है जिसमें जागरूकता लाकर सुधार लाने की बात कही जाती है । एनजीओ की अधिकांश बैठकों में महिलाओं की भागीदारी होती है और पुरुष न के बराबर भाग लेते है । ऐसे स्थिति में अब राज्यों में सरकार महिलाओं को ही अपना वोट बैंक और लक्ष्य बनाने लगी है तो आने वाले समय में एनजीओ के लिए कुछ करने को नहीं रह जाएगा । आजीविका जैसे मुद्दों पर जमीनी स्तर पर कार्य दिखाना पड़ता है इसलिए देश की अधिकांश संस्थाएं इससे कतराती है ।
विगत दिनों झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ महिलाओं से बात करने पर उनके विचारों में आए बदलावों को समझने का भी मौका मिला । महिलाओं का कहना है कि अब सरकार हमें 2500 रुपया महीना दे रही है तो इससे हम आर्थिक रूप से मजबूत हो रहे है । महिलाओं का मानना है कि पैसा आने से ही जागरूकता और जानकारी दोनों मिल सकती है । वर्तमान में सरकार के पैसों से हम अब अपने स्वास्थ का देखभाल कर सकते है और पौष्टिक आहार भी खा सकते है ।
झारखंड के सभी गांवों में सरकार के अधीन कार्य करने वाली स्वायत एजेंसी जेएसएलपीएस ने अब स्वयं सहायता समूहों के कार्यों को अपने हाथों में ले लिया है । सरकारें अब जिस तरह से एनजीओ की तरह से कार्य कर रही है इससे आने वाले दिनों में एनजीओ की प्रासंगिता नहीं रह जाएगी । एनजीओ की बैठकों में महिलाएं ही अधिकांशतः आती है और जब महिलाएं आर्थिक रूप से मजबूत होने लगेंगी तो स्वाभाविक है कि उनकी रुचि बैठकों में जागरूकता प्राप्त करने के बदले अपने आजीविका को सुनिश्चित करने पर ज्यादा होंगी । यही से एनजीओ के लिए मुश्किलें पैदा होंगी ।
ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं जैसे जैसे आर्थिक रूप से मजबूत होंगी वे अपने हितों को पहले देखेंने का कार्य करेंगी । सूचना की पहुंच ने शहरों और गांवों को एक ही सूत्र में पीरो दिया है । इस स्थिति में एनजीओ को भी अपने कार्य संस्कृति में बदलाव लाने की जरूरत है और आजीविका जैसे मुद्दों पर ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने की आवश्यकता है ।
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