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कविता : बिन पानी की बूँद

greenry in Jharkhand

बिन पानी की बूँद

बिखरती हुई औरतें समेटी नहीं जाती,

फिसल जाती हैं रेत की मानिंद,

दिखाई नहीं पड़ती तुमसे दूर होती हुई,

दर्द में लिपटी हुई औरतें खुशी का नकाब लगा मिलती हैं, 

तुम्हें दिखता है अधूरा सच ; बारिश की बूँदों में तुम सिर्फ़ पानी देखते हो, 

उन बूँदों का क्या जिनमें पानी नहीँ होता!

अपर्णा बाजपेई

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