आलिया भट्ट और वेदांग रैना की नई नवेली ‘जिगरा’ फिल्म दर्शकों को सिनेमा घरों तक खीच पाने में नाकाम हो रही है जबकि फिल्म में एक ऐसी जोड़ी की कहानी कहती है जो भावनात्मक रूप से सबसे मजबूत रिश्ता माना जाता है।
Acting : आलिया भट्ट का ऐक्सन और इमोशन दोनों ही कमाल के है और वेदांग रैना ने भी अपने हिस्से की कलाकारी में कोई कसर नहीं छोड़ी है। भाई बहन के रोल में दोनों ने गजब का सामंजस्य दिखाया है और कोई भी सीन बनावटी नहीं लगता है । आलिया भट्ट की यह सबसे बड़ी खूबी है कि वो हर किरदार में कुछ इस तरह से घुसती है कि फ़िर आलिया को खोज पाना मुश्किल हो जाता है। अपने 12 साल के करियर में आलिया ने ऐसा ऐक्सन नहीं किया था । ‘जिगरा’ में उनका दमदार ऐक्सन देखने को मिला. वो अपनी अदाकारी से चमत्कृत करती हैं वहीं वेदांग को को भी लंबी रेस का घोड़ा माना जाना चाहिए। अन्य सहायक किरदारों में सभी ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई ।
कहानी : फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी है कहानी जिसका कोई ओर -छोर नहीं है । फिल्म कहाँ से शुरू होती है और कहाँ खत्म ,कहानी में कोई लॉजिक नहीं है। एक ऐसी जेल को तोड़ना , एक अकेली लड़की और बिना किसी खास तैयारी के कुछ हजम नहीं होता । उड़ती दीवारे , टूटते टैंकर , फालतू के fighting सीक्वन्स बिल्कुल समझ नहीं आते। कहा जाता है एक खराब कहानी को बड़े से बड़ा कलाकार भी हिट नहीं कर सकता है और एक अच्छी कहानी पर खराब फिल्म नहीं बनाई जा सकती । अब मेकर्स को बे सिर पैर वाली कहानियों को ऐक्शन के नाम पर परोसना बंद कर देना चाहिए ।
अब बात करते है सबसे बड़े विमर्श की कि क्या अभिनेत्रियाँ दर्शकों को अपनी अदाकारी के दम पर टिकट खिड़की तक ला पाने में कामयाब होती हैं । तो जवाब होगा हाँ आलिया भट्ट की अदाकारी में वो दम है परंतु सिर्फ अदाकारी नहीं फिल्म एक टीम वर्क है जब सभी डिपार्टमेंट सही तरीके से काम करेंगे फिल्म तभी सफल होती है।
संगीत: फिल्म में ए आर रहमान का संगीत है जो आवश्यक कदमताल मिलाता है और दर्शकों को back ground score के रूप में एक अच्छा अनुभव देता है, परंतु थियेटर से निकलने के बाद न संगीत याद रह जाता है न ही गाने ।
हाँ आने वाले समय में भाई – बहन को लेकर कुछ और फिल्में भी आ सकती हैं क्योंकि सत्या का किरदार देर तक दिमाग पर हावी रहता है और आलिया भट्ट का ऐक्शन देखकर एक बार मन में यह जरूर आता है काश आज की हर लड़की इतनी ही दमदार और निडर होती तो देश में महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा को रोकने के लिए किसी सरकार से उम्मीद न करनी पड़ती । वैसे समय आ गया है कि हर घर में सत्या ( आलिया ) जैसी लड़कियां हों।