झारखंड में आगामी अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने के संकेत है । ऐसे में सभी दल अपनी अपनी तैयारी में जुट गए है । भाजपा ने तो एक माह पहले ही यहां चुनाव प्रभारी अपने वरिष्ठ नेता शिवराज सिंह चौहान को बना दिया है । उनको सहयोग करने के लिए असम के मुख्यमंत्री डॉ हिमांत बिश्व ( Dr.Himanta Biswa Sarma ) भी उनके साथ है । झरखंड में चल रही राजनैतिक हलचल के बीच ऐसा लग रह है कि सामान्य सीटों से भाजपा के सभी बड़े आदिवासी चेहरे चुनाव लड़ना चाहते है। झारखंड में भाजपा के बड़े नेताओं को हार का डर क्यों?
भाजपा झारखंड प्रदेश अध्यक्ष सभी सीटों के गुणा और भाग में जुटे हुए है । भाजपा के लिए सबसे बड़ी समस्या है आदिवासी सीटों के लिए उपयुक्त प्रत्याशी की तलाश करना । झारखंड में 28 आदिवासी विधानसभा सीट आरक्षित है । वर्तमान भाजपा आदिवासी सीटों पर ही सबसे कमजोर है । 2019 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा 27 आदिवासी सीटें हार गई थी ।
मई 2024 में संपन्न हुए लोकसभा की पांच आदिवासी सीटें भी भाजपा हार चुकी है । ऐसे में झारखंड भाजपा के सभी बड़े आदिवासी चेहरे अब अपने लिए जिताऊ सीट की तलाश कर रहे है । ऐसे में भाजपा के आदिवासी नेता पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, बाबूलाल मरांडी, और अन्य नेता भी सामान्य सीट से ही चुनाव लड़ना चाहते हैं । अर्जुन मुंडा को खरसावां विधानसभा में हार की संभावना फिर दिख रही है इसलिए वे जमशेदपुर के शहरी क्षेत्र से लड़ने के लिए इच्छुक है । बाबूलाल मरांडी भी धनबाद की सामान्य सीट से लड़ना चाहते है ।
भाजपा के सभी आदिवासी नेताओं को अपने आरक्षित सीटों पर हार का डर है । इसके कई कारण है जिसमें आदिवासी क्षेत्रों में यह एक भ्रम फैला हुआ है की भाजपा सत्ता में आएगी तो आदिवासी के आरक्षण को समाप्त कर देती । आदिवासियों को यह विश्वास विरोधी दलों ने दिला दिया है की भाजपा उनके सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत को समाप्त करना चाहती है । लोगों में फैली इस धारणा की काट भाजपा अभी तक नहीं ढूंढ सकी है ।
संथाल परगना और कोल्हान प्रमंडल में सबसे ज्यादा आदिवासी सीटें है और यहां भाजपा बहुत कमजोर है । अब भाजपा के बड़े आदिवासी नेता सामान्य सीटों की जुगत में है तो जेनरल कोटे के नेताओं में एक डर बैठने लगा है ।
भाजपा को जल्द ही इस समस्या से निकलना होगा नहीं तो इस बार भी झारखंड में वह सत्ता से दूर ही रहेगी ।