जमशेदपुर: ग्रामीण क्षेत्रों में झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था दिन प्रतिदिन विकराल रूप लेती जा रही है । सरकार के तमाम दावे के बावजूद भी मौलिक स्वास्थ्य सुविधा से भी लोगों को वंचित होना पड़ रहा है । ग्रामीण क्षेत्रों में खटिया पर स्वास्थ विभाग चल रहा है । आए दिन अखबारों में छपता है कि अमुक जिले में लोग मरीजों और खासकर गर्भवती महिलाओं को खटिया पर लाद करके अस्पताल ले जा रहे है । सरकारी ममता वाहन अब सड़कों से गायब है ।
विगत दिनों दैनिक भास्कर में एक रिपोर्ट छपी थी जिसमें बताया गया था कोल्हान के तीनों जिले में प्रसव पश्चात आधे घंटे में जो मां का दूध बच्चे को पिलाया जाता है वह सिर्फ 31 प्रतिशत ही है । यानी कि सिर्फ 31 प्रतिशत माताएं ही प्रसव के आधे घंटे के अंदर स्तनपान करा पा रही है । जबकि मातृत्व शिशु स्वास्थ्य व कुपोषण में सुधार के लिए सरकार करोड़ों रुपए खर्च करती है । झारखंड में तमाम एनजीओ इस मुद्दे पर कार्य करते है लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात नजर आते है । करोड़ों रुपए अब तक प्रशिक्षण के नाम पर डकारा जा चुका है ।
ग्रामीण क्षेत्रों में आयुष्मान योजना के तहत बने अधिकांश हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर बंद ही रहते है । उपस्वास्थ केंद्रों में एएनएम टीकाकरण के दिन ही दिखती है । सरकार के सभी स्वास्थ कार्यक्रमों की जिम्मेदारी सहिया के कंधे पर है लेकिन उनका मानदेय इतना कम है और कार्य का बोझ इतना ज्यादा है कि वे चाह कर भी बहुत सुधार नहीं कर सकती है ।
अभी बरसात में टाइफाइड और मलेरिया से ग्रामीण क्षेत्रों में मरीज जूझ रहे है । समय पर जांच और इलाज से लोगों की जान बचती है लेकिन उपस्वास्थ्य केंद्रों में इसकी सभी व्यवस्था नहीं होती है । अब मानवीय जीवन का मोल नहीं रह गया है ।