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हिन्दी कहानी : नेत्र दान

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सानिया! तू अगर मेरे साथ नहीं होती है तो यह दुनिया बड़ी बेरंग लगती है यार.. रीत ने उसके कंधे पर सिर रखते हुए कहा। सानिया ने भी उसकी आँखों में  झांकते हुए कहा,” और जब हम दोनों की रोशनी एक साथ मिल जाती है तो मानो दो- दो सूरज चमकने लगते हैं इस धरती पर, है न!”

 उन दोनों की बातें सुनते हुए सानिया की अम्मी जोर से चिल्लाते हुए बोली,” एक ही सूरज काफ़ी है हमारे लिए देखो ! पूरा शरीर झुलस रहा है इस गर्मी में । दो-दो सूरज चमकाकर तुम दोनो आग लगाओगी क्या!”

अम्मी की बातें सुनकर दोनो खिलखिलाकर हंस पडीं। वैसे भी रीत के बर्थडे की मस्ती अभी तक उतरी नहीं थी उन दोनों के दिमाग से। पिछली  रात  की  मस्ती  , डांस  और  खाना-पीना  कुछ ऐसा था कि  मानो रात बीती ही न हो। अगर आज कोचिंग न जाना होता तो वे दोनों अब तक घोड़े बेच कर सो रही होती। रीत के पापा का दिया गिफ़्ट आज एक्साइटमेंट की एक बड़ी वजह भी था। वह नई स्कूटी और उसको अपने दोस्तों को दिखाने का लालच कोचिंग जाने के लिए मजबूर कर रहा था। रीत सुबह-सुबह ही सानिया के घर आ गई थी, उसे लेने कि दोनों साथ साथ जाएंगी।

सानिया की अम्मी ने आज आलू के पराठे बनाए थे और हमेशा की तरह रीत को बहुत प्यार से खाने के लिए बुलाया था। खाने पीने में देर होने के कारण सानिया आज कोचिंग के लिए थोड़ी देर से निकलीं।

 रीत को घर से कोचिंग पैदल जाना पड़ता था लगभग 2 कोलोमीटर। जो कि उसको बिल्कुल पसंद नहीं था। कोचिंग में सब गाड़ियों से आते। बस वह और उसकी दोस्त सानिया ही पैदल जाते। सानिया के पापा नहीं थे और उसकी अम्मी ही उसे बड़ी तकलीफ़ों से पढ़ा रही थीं। वह तो स्कूटी जैसी लग्जरी  के बारे में सोच भी नहीं सकती थी। और रीत के घर की माली हालत भी कुछ ज़्यादा ठीक नहीं थी। हां, उसके पापा एक ज्वेलरी स्टोर में काम करते थे और उनकी पगार इतनी थी कि किसी तरह से घर का खर्च चल जाता था। बड़ी मुश्किल से किश्तों पर उन्होंने स्कूटी खरीदी थी आख़िर बेटी की इच्छा पूरी करना था।

रीत ने सानिया को स्कूटी पर बैठाया और चल दी कोचिंग सेंटर। देर न हो जाए और नई गाड़ी के एक्साइटमेंट में स्पीड के कांटे पर उसका ध्यान नहीं था और दोनो अपने बालों को आज़ाद हवाओं में लहराते हुए गाड़ी को 60 की स्पीड में भगा रही थीं कि अचानक दोनो की आंखों के सामने अंधेरा छा गया। एक ट्रक उनको टक्कर मार कर भाग चुका था। रीत और सानिया दोनो सड़क से दूर पड़ी थीं और उनकी नई-नवेली स्कूटी सड़क की दूसरी तरफ चकनाचूर होकर पड़ी थी। रीत को लोगों की आवाजें सुनाई पड़ रही थीं।

वहाँ पर भीड़ इकट्ठा हो चुकी थी। पुलिस आ गई थी। उन दोनो के घर वालों को सूचना दे दी गई थी और पुलिस ने उन दोनों को अस्पताल में भर्ती करा दिया था।

दोनो घरों में मातम छा गया था। पल भर में न जाने क्या हो गया था। पिछले  दिन का जश्न ग़म के जहन्नुम में डूब गया था।

रीत की आंखों पर पट्टी बंधी थी। सानिया का कुछ पता नहीं था। जब वह होश में आई तो उसकी आँखों के आलावा सब कुछ ठीक था। शरीर पर थोड़ी बहुत खरोंचे थी लेकिन आँखों में चुभे कांच के टुकड़ों ने उसके संसार को अंधेरा कर दिया था। 

जब उसको होश आया उसने खुद को अस्पताल के  बिस्तर पर पाया। अचानक सब कुछ एक रील की मानिंद उसके मन  में घूम गया।  स्कूटी पर आसमान से बातें  करती हुई वे दोनों और अचानक ट्रक से टकराना।

वह सा निया- सानिया चिल्लाते हुए बेड से उठने लगी तभी वहां खड़ी नर्स ने उसे पकड़ कर बैठा दिया। डॉक्टर आने वाले हैं, वे  चेक कर लेंगे  उसके बाद ही आप यहां से उठ सकती हैं। वह बार-बार सानिया के बारे में पूछ रही थी लेकिन कोई उसे कुछ नहीं बता रहा था।

ट्रक सानिया को बुरी तरह कुचल कर भाग गया था और अस्पताल लाते हुए ही उसकी मृत्य हो गई थी। जब सानिया की अम्मी अस्पताल पहुंची रीत की मां ने उन्हें गले लगा लिया। रीत की  मां  का रो- रो कर बुरा हाल था। सानिया की अम्मी जैसे जड़ हो गई थी। न  मुँह में एक शब्द न आँखों में एक आंसू! वे वहीं जमीन पर बैठ गईं। उनकी दुनिया उजड़ चुकी थी। पहले सानिया के पापा और अब सानिया। ख़ुदा यह कैसी सजा दे रहा है। सानिया की अम्मी के साथ उनके पड़ोसी,रिश्तेदार भी आ गए थे।

वे सब अस्पताल के एक कोने में बैठे हुए उन्हें दिलासा दे रहे थे। सानिया की अम्मी ने सबको भेज दिया था अस्पताल में भीड़ लगाना ठीक नहीँ, फिर सबके वहाँ होने से सानिया लौट कर तो नहीं आ जायेगी। रीत के पापा- मम्मी भी वहां बैठे थे। सब खामोश मानो आवाज़ से उन सबका नाता टूट गया हो।

तभी डॉक्टर ने रीत के पापा को बुलाया और कहा” हमें आपकी बेटी की आंखों की तुरंत सर्जरी करनी पड़ेगी नहीं तो वह ज़िंदा तो रहेगी लेकिन उसकी ज़िन्दगी अंधेरी रहेगी। और अगर कोई आई डोनर मिल जाता तो अच्छा होता।

रीत के पापा अस्पताल के एक कोने में हाँथ पर हाँथ धरे बैठे थे। कहीं कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही थी। अब रीत का जीवन अंधेरा होने वाला था। तभी एक हाँथ ने उनके हारे हुए हांथों पर अपना हाँथ रख दिया। उन्होंने नज़रें उठाकर देखा तो एक जोड़ी आंखें उन्हें दिलासा दे रहीं थीं। ”  भाई साहब, चलिए न रीत की आँखों का ऑपरेशन हो चुका है। वह सबसे पहले आपको देखना चाहती है।”  सानिया की माँ ने कहा।

क्या रीत देख सकती है? ,’हाँ , सानिया की आंखों से और उसका ऑपरेशन सफल रहा” डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए कहा। सानिया की अम्मी ने उसकी आँखें  दान कर दी । उन्होंने मेरी और आपकी बातें सुन ली थीं।

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