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बाल कहानी : मददगार कौआ

एक बहुत बड़ा शहर था. ऊंची ऊंची इमारतें, कहीं साफ़ तो कहीं गंदी सड़कें। हर समय चलती हुई गाड़ियाँ और चारों तरफ़ भीड़ ही भीड़।

शहर में पक्षी और जानवर बहुत कम दिखते। सजे संवरे लोग जाने कहां जाने की जल्दी में दिखाई देते। कहीं कहीं एक दो पेड़ दिखाई भी पड़ते तो बेहद उदास नजर आते। उन पर पक्षी बहुत कम आते और आते भी तो गाड़ियों के शोर से तुरंत उड़ जाते। पक्षी आते तो उन्हें खाने पीने की बहुत दिक्कत होते। न कहीं तालाब, न खेत। उन्हें न कहीं पीने का पानी दिखता न शांत बैठने की जगह।  पूरा शहर रात होते ही दूधिया रौशनी से नहा जाता। पक्षियों को रात में अंधेरे की आदत थी और वे रात में इतनी ज्यादा रोशनी से परेशान हो जाते।

 उस शहर के बीच से एक नदी बहती थी जिसमें सिर्फ बरसात के समय पानी आता। गर्मी और सर्दी के मौसम में नदी सूख जाती।

एक बार एक चिड़िया उड़ती हुई उस शहर में आ गई और एक पेड़ की डाल पर बैठ गई। चिड़िया को नई जगह पर आकर अच्छा लगा। उसने सोचा कुछ दिन इस जगह रहकर देखती हूं, हो सकता है मेरे नए दोस्त बन जाएं। उसने उसी पेड़ की एक डाल पर घोंसला बना लिया और उस में रहने लगी।

अभी कुछ दिन ही बीते थे कि एक दिन जब शाम को लौटी तो उस जगह पर न वह पेड़ था न ही उसका घोंसला। चिड़िया ने सोचा कहीं वह रास्ता तो नहीं भूल गई, फिर उसने सामने वाला घर देखा जो कि वहीं पर था। चिड़िया समझ गई कि उसका पेड़ काट दिया गया है और पेड़ के साथ ही उसका घोंसला भी टूट गया है। चिड़िया बहुत उदास हो गई और रात भर वह सामने वाले घर की छत पर एक कोने में बैठी रही।

कुछ दिन तक हर रोज जब चिड़िया शाम को  लौटती तो उदास होकर पेड़ और अपने घोंसले को याद करती और चुपचाप उसी घर की छत पर एक कोने में बैठ जाती। चिड़िया ने चहकना भी बंद कर दिया था।

बरसात आने वाली थी और चिड़िया को अपने रहने के लिए घर की जरूरत महसूस हो रही थी। उसने हिम्मत करके अपना घोंसला उसी छत पर एक कोने में बनाना शुरू किया। कुछ दिन में उसका घोंसला बन कर तैयार हो गया और वह खुशी खुशी घोंसले में रहने लगी।

लेकिन चिड़िया के ऊपर फिर से मुसीबत आ गई। एक रविवार को उस घर के मालिक ने घर की सफाई की तो देखा एक घोंसला बना हुआ है और कुछ तिनके इधर- उधर बिखरे हुए हैं। मालिक ने घोंसला तोड़ कर फेंक दिया और उस जगह को साफ़ कर दिया।

बेचारी चिड़िया जब शाम को लौटी तो उसका घर गायब था और वह सर्दी की रात में उसी छत पर पर बैठी रही। वह बहुत दुखी थी। अब तक उसे कोई दोस्त भी नहीं मिला था।

 चिड़िया ने हार नहीं मानी उसे जहां जगह मिलती वहीं घोंसला बना लेती। लेकिन शहरी लोग छत या बालकनी में बने घोंसले को तोड़ देते।

चिड़िया बहुत परेशान हो गई। अंत में उसने नदी के ऊपर बने पुल के नीचे अपना घोंसला बनाया। जिसमे उसने अंडे दिए और जतन से उनकी सेवा करने लगी। पुल बहुत जर्जर और कमजोर था। पुल के ऊपर से कोई भी भारी गाड़ी निकलती तो पुल हिलने लगता। चिड़िया परेशान हो जाती  कि कहीं उसके अंडे पानी में न गिर जाएं। चिड़िया बहुत परेशान थी वह मन ही मन सोचती यह कैसा शहर है यहां एक भी पेड़ ऐसा नहीं है जहां वह घोंसला बनाकर निश्चिंत होकर रह सके।

एक दिन चिड़िया के अंडों से छोटे छोटे बच्चे निकल आए। अब चिड़िया को और ज्यादा चिंता होने लगी।

वह दाना खोजने जाती और तुरंत वापस आ जाती कि उसके बच्चे पानी में न गिर जाएं।

एक रात  बहुत बारिश हो रही थी। एक कौआ भीगा हुआ ठंड में कांपता हुआ उस पुल के नीचे आया और चिड़िया के घोंसले से थोड़ी दूर बैठ गया। उसी समय पुल के ऊपर से एक भारी ट्रक निकला और पुल जोर-जोर से हिलने लगा। चिड़िया और उसके बच्चे बेहद डरे हुए थे। कौआ भी डर गया था। चिड़िया ने कौआ को अपने घोंसले में बुला लिया और उसे खाने के लिए रोटी का एक टुकड़ा दिया। अब कौआ थोड़ा गर्म हो गया था और घोंसले के अंदर होने के कारण उसे ठंड लगना बंद हो गई थी।

कौआ बोला ,”यह पुल बहुत कमजोर है कभी भी गिर सकता है। तुम अपने बच्चों को लेकर कहीं दूसरी जगह क्यों नहीं चली जाती”? चिड़िया बोली, “मै इन्हें घोंसले के बाहर थोड़ी देर भी नहीं छोड़ सकती। मुझे कोई जगह भी नहीं पता जहां मैं इन्हें सुरक्षित रख सकूं और दूसरा घोंसला बना सकूं”।

कौआ बोला,” मैंने एक पेड़ की जड़ में एक गड्ढा देखा है जहां पर तुम इन बच्चों को रख सकती हो और दूसरा घोंसला बना सकती हो। तुमने आज मुझे बारिश की इस भयानक रात में रहने की जगह दी है। इन बच्चों की रक्षा करने में मै तुम्हारी मदद करूंगा”।

अगले दिन एक बच्चे को कौआ ने और एक बच्चे को चिड़िया ने पकड़ा और एक पुराने बरगद के पेड़ की जड़ में बने गड्ढे में उन्हें रख दिया। यह जगह शहर से थोड़ी दूर थी। कौआ ने कहा ,”अब तुम जल्दी से घोंसला बना लो। तब तक मैं यही बच्चों की देखभाल करूंगा”।

चिड़िया अपने काम में लग गई। उसने घोंसला बनाने के लिए घास , तिनके, सूखे पत्ते, छोटी लकड़ियां, लकड़ी के रेशे, प्लास्टिक के धागे इत्यादि जो कुछ भी मिला वह ले आयी और चौबीस घंटे लगातार मेहनत करके उसने अपना घोंसला तैयार कर लिया। अगले दिन कौआ की मदद से अपने दोनो बच्चों को घोंसले में ले आई। कौआ ने कहा, आज खाना मै लाता हूं। वह उड़  गया और उसे किसी घर की एक छत पर एक रोटी मिल गई। वह पूरी रोटी उठा लाया और चिड़िया के घोंसले के अंदर रख दिया। चिड़िया और उसके बच्चे का खाना आ गया था। कौआ उन लोगों से फिर मिलने का वादा करके उड़ गया।

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